ग्राउंड जीरो से इमरान हाशमी की बदलेगी छवि

कश्मीर में हुए सबसे बड़े ऑपरेशन की कहानी, BSF के सपोर्ट के बिना मुमकिन नहीं था शूट

एक्टर इमरान हाशमी की फिल्म ‘ग्राउंड जीरो’ 25 अप्रैल को रिलीज हो रही है। इस फिल्म में इमरान पहली बार एक नए अंदाज में दिखेंगे। कहानी बीएसएफ ऑफिसर नरेंद्र नाथ धर दुबे की है और इमरान उनका रोल निभा रहे हैं। सच्ची घटना पर आधारित ‘ग्राउंड जीरो’ को एक्सेल एंटरटेनमेंट बड़े पर्दे पर लेकर आ रही है। फिल्म को तालिस्मान प्रोडक्शन को-प्रोड्यूस कर रहा है। बैतूल मिरर से फिल्म और उसके बनने के प्रोसेस पर तालिस्मान प्रोडक्शन के अभिषेक कुमार और निशिकांत रॉय ने खास बातचीत की है। अभिषेक- तालिस्मान का मतलब मैजिक होता है यानी कि तिलिस्मी। हम दोनों दिल से कहानीकार हैं। हम दोनों को लगा कि अगर तालिस्मान को हम अपनी कंपनी का नाम देंगे तो ये हमारे सपने को पूरा करेगी। जो कहानियां हम बनाएंगे या ऑडियंस तक लाएंगे, उनमें अपना ही मैजिक होगा। उस मैजिक को ऑडियंस महसूस कर पाएगी। हमने इसलिए इस नाम को चुना। अभिषेक- हम दोनों का रुझान फैक्ट बेस्ड फिक्शन कहानियों पर रहा है। हम हमेशा ही अच्छी कहानियों के खोज में रहते हैं। इसी दौरान हमें बीएसएफ कमांडेंट नरेंद्र नाथ धर दुबे जी की कहानी पता चली। उनकी कहानी पढ़ने के बाद हमें एहसास हुआ कि ऑपरेशन 20 साल पहले हुआ था। इस पर मीडिया में ज्यादा कवरेज हुई नहीं है। नरेंद्र सर और उनकी बटालियन ने इतने बड़े आतंकी को मार गिराया था। हमें लगा कि उनकी कहानी में इतनी इंग्रीडिएंट्स है कि उस पर अच्छी फिल्म बन सकती है। हमारा दिल्ली में एक दोस्त है। उसकी एक इवेंट में नरेंद्र सर से मुलाकात हुई। उसने हमें कॉल किया और बताया कि वो सर से मिला है। उसने पूछा कि क्या तुम लोग मिलना चाहोगे? हमने अगली फ्लाइट पकड़ी और उनसे मिलने दिल्ली पहुंच गए। जब उनसे आमने-सामने बात हुई तो उन्होंने हमें कश्मीर से जुड़ी खूब सारे किस्से-कहानी बताएं। उन्होंने बताया कि वो दौर कैसा था। उस वक्त वहां आर्मी नहीं होती थी। बीएसएफ को रहने के लिए कॉन्टेमेंट नहीं बल्कि कश्मीरी पंडितों का घर दिया जाता था। ऐसे में बीएसएफ और उनकी फैमिली के साथ लोग कैसे पेश आते थे। फिर कैसे उन्होंने लोकल के सपोर्ट से इतने बड़ी प्लानिंग को अंजाम दिया। ये सब सुनकर हमें लगा कि ये तो बैठी-बिठाई कहानी है।अभिषेक- देखिए, किसी भी कहानी में थोड़ा फिक्शन तो होता है। ये कहानी की जरूरत होती है। हम कोई डॉक्यूमेंट्री तो बना नहीं रहे थे। जब आप फिल्म देखेंगे तो आपने जो भी पढ़ा है वो सब स्क्रीन पर आपको दिखेगा। निशिकांत- नरेंद्र नाथ जी के साथ हुई वो घटना इतनी फिल्मी है कि खुद इमरान हाशमी भी हैरान थे। उन्होंने कहा कि स्क्रिप्ट में ये नहीं होना चाहिए। ऑडियंस को यकीन ही नहीं होगा। नरेंद्र नाथ जी दो साल तक कश्मीर में रहे थे। उनकी दो साल की जर्नी, उनका इन्वेस्टीगेशन और गाजी बाबा पर हुआ अटैक इतना ज्यादा ड्रमैटिक है कि हमें फिक्शन करने की जरूरत ही नहीं पड़ी। अभिषेक- मुझे नहीं लगता कि कोई प्रेशर है। हमने अपनी तरफ से एक अच्छी कहानी दिखाने की कोशिश की है। हम चाहेंगे कि ऑडियंस इसे सराहा और अपना प्यार दे। हमारी पहली पिक्चर है और हमने पूरी शिद्दत के साथ फिल्म बनाई है। मैं यहां पर एक्सेल एंटरटेनमेंट का नाम लेना चाहूंगा कि उन्होंने हमारी कहानी पर भरोसा दिखाया। उन्होंने हमें अपने साथ कौलेब करने का मौका दिया। पहली ही स्टोरी टेलिंग में हमारी एक्सेल के साथ अंडरस्टैंडिंग बन गई थी। ये फिल्म काफी गंभीरता और सच्चाई के साथ बनी है। इमरान तो दुबे जी के किरदार में घुस गए थे। उन्होंने इस किरदार को एकदम रियल बना दिया है। निशिकांत- फिल्म पर जब काम होता है तो कोई स्टार पहले तय नहीं होता है। लेकिन इमरान को लेकर एक्सेल एंटरटेनमेंट के मालिक रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर काफी कन्विंस थे। इमरान पर उनका भरोसा सही भी साबित हुआ। आपने ट्रेलर में देखा होगा। इमरान पहली बार इस तरह के रोल में दिख रहे हैं। इस रोल में ढलना उनके लिए भी चुनौती थी। अभिषेक- इमरान ने इस किरदार के लिए बहुत मेहनत की है। उन्होंने बीएसएफ के जवान के साथ काफी वक्त गुजारा। जवान किस माहौल में रहते हैं, उसे समझने की कोशिश की। जवानों की लाइफ की बारीकियों को समझने के बाद उन्होंने खुद को किरदार में ढाला। अभिषेक- सच बताऊं तो हम भी इस फिल्म के लिए पहली बार कश्मीर गए थे। कोई भी चैलेंज नहीं रहा। हमें बीएसएफ ने इतना ज्यादा सपोर्ट किया। हमने बीएसएफ कॉन्टेमेंट, पहलगाम में शूट किया। पूरी टीम एक परिवार की तरह हंसते-खेलते कश्मीर गई थी और मजे में वहां शूटिंग हुई। कश्मीर के बारे में जो भी सुना था, वैसा वहां कुछ भी देखने को नहीं मिला। सब कुछ बहुत नॉर्मल और ऑर्गेनाइज्ड था। मैं बीएसएफ को शुक्रिया कहूंगा कि उन्होंने हमें इतना सपोर्ट किया। निशिकांत- जब आप शहर में रहते हैं तो कश्मीर आपको मिथ की तरह लगता है। लेकिन वहां के लोग बहुत अच्छे और नॉर्मल हैं। जब हम वहां गए तो आम लोगों का भी बहुत सपोर्ट मिला। किसी भी तरह की दिक्कत नहीं हुई। वहां बहुत शांति थी। हमने तो एकदम अलग कश्मीर देखा। हमने वहां कोई डर का माहौल नहीं देखा। अभिषेक- हम अपनी फिल्म के जरिए कश्मीर और वहां के लोगों को साथ लेकर चलने का मैसेज दे रहे हैं। इसका उदाहरण मुझे वहां देखने मिला। एक दिन कश्मीर में हमें शंकराचार्य मंदिर जाना था। हमारे जो लोकल ड्राइव थे, वो भी मुस्लिम थे। वो भी हमारे साथ मंदिर में ऊपर तक आए। मेरे मन में था कि ये हिंदू मंदिर है, पता नहीं ये आ सकते हैं या नहीं। लेकिन उन्होंने कहा कि साहब हम तो यहां आते ही हैं। जो भी टूरिस्ट यहां दर्शन के लिए आते हैं, हम सबको ही ऊपर लेकर आते हैं। अभिषेक- बिल्कुल, बीएसएफ के इतिहास में ये सबसे बड़ा और जरूरी ऑपरेशन रहा। उसको हम लोग फिल्म के माध्यम से दिखा पा रहे हैं इसलिए सभी खुश हैं। निशिकांत- कश्मीर में शूटिंग के दौरान जो भी ऑफिसर थे, उसने हाल ही में हमने ट्रेलर शेयर किया। वे बहुत ज्यादा खुश और एक्साइटेड हैं। उनके लंबे-लंबे मैसेज आ रहे हैं, जैसे उनकी फिल्म है। उनके मैसेज देखकर हम इनकरेज हो रहे हैं। निशिकांत- हमें बहुत मदद मिली। आप जब इंडस्ट्री में नए होते हैं और कुछ अलग स्टोरी या रियलस्टिक स्टोरी लेकर आते हैं तो एक स्ट्रगल रहता है। फिर एक ऐसे पार्टनर की जरूरत होती है, जो आपकी सोच को आगे लेकर जा सके। एक्सेल एंटरटेनमेंट से बेहतर पार्टनर हमें नहीं मिल सकता था। जब हम कॉलेज में थे, तब ‘दिल चाहता है’ आई थी। आज हम उसी एक्टर, डायरेक्टर के साथ कम कर रहे हैं, ये सपना सच होने जैसा है। अभिषेक- हमारी पहली पिक्चर है और हम पर काफी जिम्मेदारी थी। हमने फिल्म के लिए परमिशन लिया, दुबे सर का भरोसा जीता। शुरू में एक-दो लोगों से फिल्म को लेकर बातचीत हुई लेकिन वो सफल नहीं रही। उसी दौरान हम लोग एक्सेल में रितेश सिधवानी से मिले। पहली ही मीटिंग के बाद प्रोसेस शुरू हो गया। वो लोग खुद ऐसी फिल्म ऑडियंस के सामने लाना चाहते थे। अभिषेक- हमारी लिस्ट में काफी सारी कहानियां हैं। पिछले साल हमने एक कहानी विकास बहल के साथ अनाउंस की थी। वो ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की कहानी है, जिस पर काफी चर्चा भी हुई थी। उस पर फिलहाल काम चल रहा है। हमारी कोशिश यही है कि ऐसी कहानियों को हम यंग जेनरेशन तक पहुंचा पाए। उन्हें पता चलना चाहिए कि कितने सारे लोगों ने हमारे लिए कुर्बानी दी है। अभिषेक- जमीनी कहानियों के लिए मुंबई से बाहर निकलना पड़ेगा। जिन कहानियों पर हमें लगा कि इन पर और काम करना चाहिए, उसके लिए हमें मुंबई से बाहर गए। उन जगहों पर गए, उन लोगों से मिले। खूब सारा रिसर्च किया। बाहर निकलने से कई और बातें पता चलती हैं। अभी हमारे पास जो भी कहानियां हैं, उसे हमने मुंबई के बाहर निकलकर ढूंढा है। निशिकांत- हमारे पास ऐसी-ऐसी कहानियां हैं, जिन जगहों पर हम कभी नहीं गए। इन कहानियों के कारण हम पाकिस्तान बॉर्डर, नार्थ ईस्ट तक चले गए। इनमें सिर्फ आर्म्ड फोर्स ही नहीं, ह्यूमन स्टोरी भी शामिल हैं। वो एक बेहतरीन एक्सपीरियंस रहा है।

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