Betul News: बैतूल। राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद ने वन संरक्षण संशोधन अधिनियम-2023 के विरोध में एक व्यापक आंदोलन का आह्वान किया है। देश भर में आदिवासियों के अधिकारों और उनकी जमीन, जंगल, मकान और पानी के स्वामित्व के खिलाफ उठाए गए इस कदम के विरोध में परिषद ने बुधवार 21 अगस्त को जिले की समस्त तहसीलों में धरना प्रदर्शन आयोजित कर महामहिम राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा।
परिषद ने दावा किया है कि यह अधिनियम आदिवासी समुदाय के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, जो उन्हें संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत अनुसूचित जनजाति के रूप में प्रदान किए गए हैं।
आदिवासी एकता परिषद ने आरोप लगाया है कि आदिवासियों को उनके पूर्वजों द्वारा सुरक्षित किए गए जल, जंगल, और जमीन से बेदखल करने के लिए सरकारें इस अधिनियम का इस्तेमाल कर रही हैं। परिषद ने इस पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा कि यह कदम आदिवासियों की मूल पहचान, कला, सभ्यता, और संस्कृति को खतरे में डाल रहा है।
बांसवाड़ा के आदिवासी सांसद राजकुमार रोत ने भी इस मुद्दे को संसद में उठाया। उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि पिछले पांच वर्षों में 18,922.96 हेक्टेयर वन भूमि निजी कंपनियों को खनन के लिए आवंटित की गई है, जिसमें से 16,490 हेक्टेयर भूमि आदिवासी बहुल राज्यों जैसे मध्य प्रदेश, राजस्थान, उड़ीसा, झारखंड और छत्तीसगढ़ की है। राजकुमार रोत ने कहा कि केंद्र सरकार देशभर की वन भूमि कॉर्पोरेट्स को सौंप रही है, जिससे आदिवासियों के अधिकारों पर सीधा हमला हो रहा है।
आदिवासी एकता परिषद का कहना है कि विकास के नाम पर आदिवासियों को बड़े पैमाने पर 5वीं और 6वीं अनुसूची क्षेत्रों से विस्थापित किया जा रहा है। बड़े-बड़े बांधों, नेशनल कॉरिडोर, और भारत माला प्रोजेक्ट्स के तहत आदिवासी समुदाय को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। परिषद ने दावा किया है कि इस विस्थापन से न केवल आदिवासियों की संस्कृति और अस्तित्व को खतरा है, बल्कि पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है।
संविधान के दायरे में न्याय की मांग
आदिवासी एकता परिषद ने अपनी मांगों को स्पष्ट करते हुए कहा कि वे संविधान के दायरे में रहते हुए न्याय की उम्मीद करते हैं। उन्होंने सरकार से मांग की है कि वह आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन के मालिकाना हक और अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे। इसके अलावा, परिषद ने कहा कि वह अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए तीन चरणों में राष्ट्रव्यापी आंदोलन करेगी।
यह है आंदोलन का उद्देश्य
आदिवासी एकता परिषद ने अपने आंदोलन का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि वे संविधान में दिए गए अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार द्वारा पारित किए गए वन संरक्षण संशोधन अधिनियम-2023 से आदिवासियों को उनके जल, जंगल, जमीन से बेदखल किया जा रहा है, जो संविधान के खिलाफ है। आदिवासी एकता परिषद ने जनजातीय संगठनों के आक्रोश को अभिव्यक्त किया और सरकार से मांग की कि वह उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करे और उचित कार्यवाही करे।
धरना प्रदर्शन ज्ञापन में यह रहे मौजूद
ज्ञापन देने वालों में मुख्य रूप से रंगीलाल मेश्राम, तहसील अध्यक्ष, राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद भैंसदेही; प्रमोद बेले, तहसील अध्यक्ष, शेड्यूल कास्ट फेडरेशन ऑफ इंडिया भैंसदेही; जनार्दन पाटिल, जिला अध्यक्ष, बहुजन मुक्ति पार्टी बैतूल; भीमराव भूमरकर, प्रदेश अध्यक्ष, भारत मुक्ति मोर्चा; वहिद पठान, जिला संयोजक, राष्ट्रीय मुस्लिम मोर्चा बैतूल; एस.डी. पाटिल, जिला अध्यक्ष, राष्ट्रीय मूलनिवासी पेंशनर संघ बैतूल; ननिया अहाके, तहसील अध्यक्ष, भारत मुक्ति मोर्चा महिला विंग मुलताई; पीरथीलाल भूमरकर, प्रदेश कोषाध्यक्ष, राष्ट्रीय मूलनिवासी बहुजन कर्मचारी संघ बैतूल; दुर्गासिन्ह मर्सकोले, प्रदेश महासचिव, राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद म.प्र.; दिलीप उईके, कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद म.प्र., चिचोली; कमलेश धुर्वे, सुरेश चंदेलकर, तहसील अध्यक्ष, भारत मुक्ति मोर्चा चिचोली; मनोज वानखेड़े, जिला संयोजक, बहुजन
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